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ताबिश मेहदी

1951 | दिल्ली, भारत

नैतिक मूल्यों पर ज़ोर देने वाले लोकप्रिय शायर

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ताबिश मेहदी के शेर

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पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है

मकाँ अपने बहुत ऊँचे रखना

फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं

वो तेरे शहर में रुस्वा बहुत है

मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने

किसी ने मेरी ग़म-ख़्वारी नहीं की

ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की

अमीर-ए-शहर से यारी नहीं की

ये माना वो शजर सूखा बहुत है

मगर उस में अभी साया बहुत है

अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो

किसी की राह में काँटे रखना

अजनबी रास्तों पर भटकते रहे

आरज़ूओं का इक क़ाफ़िला और मैं

देर तक मिल के रोते रहे राह में

उन से बढ़ता हुआ फ़ासला और मैं

तकोगे राह सहारों की तुम मियाँ कब तक

क़दम उठाओ कि तक़दीर इंतिज़ार में है

हम को ख़बर है शहर में उस के संग-ए-मलामत मिलते हैं

फिर भी उस के शहर में जाना कितना अच्छा लगता है

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