ताहिरा जबीन तारा के शेर
ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था
हम अपनी ज़ात में गुम थे कोई ख़याल न था
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मिल के लगा है आज ज़माने ठहर गए
तुझ से बिछड़ के वक़्त गुज़ारा नहीं गया
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सजा लिया है हथेली पे हम ने उस का नाम
इस लिए तो बिछड़ जाने का मलाल न था
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