तहज़ीब हाफ़ी के शेर
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
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तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
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ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
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अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ
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दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
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वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
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बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता
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टैग : गाँव
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इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरज़ी है मुझे
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तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुंदरों से अकेले में बात करनी है
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मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
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पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था
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मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
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तुझ को पाने में मसअला ये है
तुझ को खोने के वसवसे रहेंगे
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मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
साँस लेना भी शाइरी है मुझे
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सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
हाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है
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इस लिए रौशनी में ठंडक है
कुछ चराग़ों को नम किया गया है
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आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ
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नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए
ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए
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टैग : रात
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मुझ पे कितने सानहे गुज़रे पर इन आँखों को क्या
मेरा दुख ये है कि मेरा हम-सफ़र रोता न था
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मेरी नक़लें उतारने लगा है
आईने का बताओ क्या किया जाए
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टैग : आईना
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क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले
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कोई कमरे में आग तापता हो
कोई बारिश में भीगता रह जाए
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टैग : बारिश
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मिरे हाथों से लग कर फूल मिट्टी हो रहे हैं
मिरी आँखों से दरिया देखना सहरा लगेगा
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