तालिब अली खान ऐशी के शेर
कौन पाबंद-ए-जुनूँ फ़स्ल-ए-बहाराँ में न था
इस बरस नंग-ए-जवानी था जो ज़िंदाँ में न था
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कम हुई बाँग-ए-जरस भी या-रब
हम से वामाँदा किधर जाएँगे
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कोई इस फ़स्ल में दीवाना हुआ है शायद
कि हवा हाथ में ज़ंजीर लिए फिरती है
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