उमैर नजमी के शेर
ये सात उठ पड़ोसी कहाँ से आए मिरे
तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मिरे
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उस की तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं
जिस समुंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे
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तुम पे क्या ख़ाक असर होगा मिरे शे'रों का
तुम को तो मीर-तक़ी-'मीर' नहीं खींच सका
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टैग : मीर तक़ी मीर
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किताब-ए-इश्क़ में हर आह एक आयत है
पर आँसुओं को हुरूफ़-ए-मुक़त्तिआ'त समझ
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टैग : आह
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निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है
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टैग : परिंदा
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बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
किसी गली में किराए पे घर लिया उस ने
फिर उस गली में घरों के किराए बढ़ने लगे
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