उमैर नजमी

ग़ज़ल 14

अशआर 4

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा

अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है

किताब-ए-इश्क़ में हर आह एक आयत है

पर आँसुओं को हुरूफ़‌‌‌‌-ए-मुक़त्तिआ'त समझ

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बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं

लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं

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उस की तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं

जिस समुंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे

चित्र शायरी 2

 

वीडियो 5

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं

उमैर नजमी

जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा

उमैर नजमी

दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका

उमैर नजमी

मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया

उमैर नजमी

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