उमर अंसारी
ग़ज़ल 8
अशआर 12
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार न कर
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बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
दिल की घनी बस्ती में यारो आन बसे हैं चोर बहुत
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छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
पहचान लेंगे उस की किसी इक अदा से भी
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उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
वो आदमी तो सुना अपने घर में तन्हा था
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चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
हमें तो खा गया साया शजर का
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