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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
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उर्फ़ी आफ़ाक़ी

1936 | लखनऊ, भारत

उर्फ़ी आफ़ाक़ी के शेर

दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ

काँटे अगर मिलें तो जिगर में चुभोइए

वो आए जाता है कब से पर नहीं जाता

वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था

मालूम है 'उर्फ़ी' जो है क़िस्मत में हमारी

सहरा ही कोई गिर्या-ए-शबनम को मिलेगा

चला था मैं तो समुंदर की तिश्नगी ले कर

मिला ये कैसा सराबों का सिलसिला मुझ को

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