वसीम मलिक के शेर
लुत्फ़ ये है कि उसी शख़्स के मम्नून हैं हम
जिस की तलवार ने क़िस्तों में हमें काटा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कोई दस्तक कोई आहट न सदा है कोई
दूर तक रूह में फैला हुआ सन्नाटा है
-
टैग : आहट
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
शाख़ से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं
फूल हैं ख़ुशबू लुटा कर ख़ाक हो जाएँगे हम
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
लगता है जुदा सब से किरदार 'वसीम' उस का
वो शहर-ए-मोहब्बत का बाशिंदा नज़र आए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कल साथ था कोई तो दर ओ बाम थे रौशन
तन्हा हूँ 'वसीम' आज तो घर काट रहा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जो शख़्स मिरा दस्त-ए-हुनर काट रहा है
नादान है शादाब शजर काट रहा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड