वसीम नादिर के शेर
मैं ख़ुशबुओं के ज़िक्र पे ख़ामोश ही रहा
हालाँकि एक फूल मिरे हाफ़िज़े में था
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हम चाहते थे मौत ही हम को जुदा करे
अफ़्सोस अपना साथ वहाँ तक नहीं हुआ
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