वज़ीर आग़ा
लेख 23
अशआर 34
इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
इतना न दूर जा के हमा-वक़्त पास हो
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
किस की ख़ुशबू ने भर दिया था उसे
उस के अंदर कोई ख़ला न रहा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया
मैं रहगुज़र था मुझे रौंद कर ज़माना गया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
या रब तिरी रहमत का तलबगार है ये भी
थोड़ी सी मिरे शहर को भी आब-ओ-हवा दे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने
किसी पागल की तरह नक़्श मिटाने वाला
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए