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यज़दानी जालंधरी

1915 - 1990 | लाहौर, पाकिस्तान

यज़दानी जालंधरी

ग़ज़ल 12

अशआर 5

बज़्म-ए-वफ़ा सजी तो अजब सिलसिले हुए

शिकवे हुए उन से हम से गिले हुए

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इज्ज़ के साथ चले आए हैं हम 'यज़्दानी'

कोई और उन को मना लेने का ढब याद नहीं

शम्अ होगी सुब्ह तक बाक़ी परवाने की ख़ाक

अहल-ए-महफ़िल की ज़बाँ पर दास्ताँ रह जाएगी

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मिला है तपता सहरा देखने को

चले थे घर से दरिया देखने को

ज़िंदगी कोह-ए-बे-सुतूँ गोया

हर नफ़स एक तेशा-ए-फ़र्हाद

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