यूसुफ़ आज़मी के शेर
पलकें हैं कि सरगोशी में ख़ुश्बू का सफ़र है
आँखों की ख़मोशी है कि आवाज़ का चेहरा
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मैं वक़्त के कोहराम में खो जाऊँ तो क्या ग़म
ढूँडेगा ज़माना मिरी आवाज़ का चेहरा
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पानी की मौजों पे लिक्खी है लम्हों की बे-रूह कहानी
क्या पाया है क्या खोया है मैं सदियों से खोज रहा हूँ
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सिमटे रहे तो दर्द की तन्हाइयाँ मिलीं
जब खुल गए तो दहर की रुस्वाइयाँ मिलीं
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