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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Yusuf Taqi's Photo'

यूसुफ़ तक़ी

1943 | कोलकाता, भारत

शोधकर्ता, आलोचक, शायर, पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग कलकत्ता युनिवर्सिटी

शोधकर्ता, आलोचक, शायर, पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग कलकत्ता युनिवर्सिटी

यूसुफ़ तक़ी के शेर

बे-सदा क्यूँ गुज़रते हो आवाज़ दो

अब भी कुछ लोग अंदर मकानों में हैं

देखा तो ज़िंदगी में बहुत कामयाब थे

सोचा तो जीत आई नज़र मात की तरह

आओ पुरानी याद के शो'लों में ताप लें

कितने हैं हाथ सर्द मुलाक़ात की तरह

पड़ोसी तू बता हम को तो कुछ होश नहीं

था हमारा भी कोई घर तिरे घर से पहले

शब पलंग पर हाँपते साए रहे

ख़्वाब दरवाज़े खड़ा तकता रहा

खाँसती मद्धम सी इक आवाज़ जब से खो गई

ग़ैरियत की बू से महका मुझ को अपना घर मिला

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