ज़फ़र ताबिश
ग़ज़ल 12
अशआर 8
मंज़र से ला-मंज़र तक
आँखें ख़ाली ख़ाली हैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
जब भी झुक कर मिलता हूँ मैं लोगों से
हो जाता हूँ अपने क़द से ऊँचा मैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
न कहो तुम भी कुछ न हम बोलें
आओ ख़ामोशियों के लब खोलें
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
क्या जाने क्यूँ जलती है
सदियों से बिचारी धूप
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं
लेकिन अपने घर में आ कर सोया मैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए