ज़हीर अातिश के दोहे
दामन-ए-सुब्ह पर फैल गए रंग बिरंगे फूल
इन की रौनक़ हर जगह घर हो या स्कूल
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करना हो तो यूँ करो जीवन का उपयोग
नाम तुम्हारा दोहराएँ आने वाले लोग
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जेबें ख़ाली हो गईं चुप है अब इंसान
बिन पानी के जिस तरह मछली हो बे-जान
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देख के बिस्तर आ गया हमें नींद का ध्यान
ग़ाएब है तलवार कहीं बची है ख़ाली म्यान
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सड़ी-गली इक लाश को नोच रही है चील
अब तो शहर में रहने की राय करो तब्दील
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