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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़हूर मिन्हास

ग़ज़ल 7

अशआर 18

इस क़दर क़हक़हे हैं दुनिया में

शर्म आती है मुझ को रोते हुए

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दु'आ है ये रक़ीब भी मिरी तरह ही ख़्वार हो

मैं चाहता हूँ आप की रक़ीब से बनी रहे

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फ़िक्र-ए-तज्दीद-ए-हिज्र है वर्ना

कब मुझे वस्ल की ज़रूरत है

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भेजी तस्वीर भी तो आँखों की

या'नी आँखें दिखा रही हो मुझे

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ये तो इंसानियत को ठोकर है

आदमी आदमी का नौकर है

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