ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़ के शेर
आप को ख़ून के आँसू ही रुलाना होगा
हाल-ए-दिल कहने को हम अपना अगर बैठ गए
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टैग : आँसू
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तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी
कि हाल उस को है मालूम हू-ब-हू मेरा
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न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
मुझे तो उस के सिवा कुछ नज़र नहीं आता
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तेरे कहने से मैं अब लाऊँ कहाँ से नासेह
सब्र जब इस दिल-ए-मुज़्तर को ख़ुदा ने न दिया
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कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन
ख़ून होने के लिए उस ने जिगर छोड़ दिया
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वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
हम बात भी ख़ल्वत से निकलने नहीं देते
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फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया
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खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना
बहका दिया है सब को दिखला के हाल अपना
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गुलशन-ए-ख़ुल्द में हर-चंद कि दिल बहलाया
कूचा-ए-यार मगर दिल से भुलाया न गया
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दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'
ज़ोफ़ ने हर्फ़-ए-शिकायत कभी आने न दिया
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हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं
गिरता हूँ आब-ए-ख़ंजर-ओ-शमशीर देख कर
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लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'
हो गया आन के होशियार तिरे कूचे में
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सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो
फिर न पाओगे अगर उस ने ये घर छोड़ दिया
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तुम्हारी रह का रहा हम को हर तरफ़ धोका
चले जिधर को सो बे-इख़्तियार हो के चले
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पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा
या-रब गया है कौन ये सर पर उड़ा के ख़ाक
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बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
सुल्ह क्यूँकर होवे जब तक दरमियाँ कोई न हो
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