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ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

1817 - 1852 | दिल्ली, भारत

अहम क्लासिकी शायर, ग़ालिब की बीवी के भांजे, जिन्हें ग़ालिब ने अपने सात बच्चों के असमय निधन के बाद बेटा बना लिया था. ग़ालिब आरिफ़ की शायरी के प्रशंसकों में भी शामिल थे

अहम क्लासिकी शायर, ग़ालिब की बीवी के भांजे, जिन्हें ग़ालिब ने अपने सात बच्चों के असमय निधन के बाद बेटा बना लिया था. ग़ालिब आरिफ़ की शायरी के प्रशंसकों में भी शामिल थे

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़ के शेर

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तुम्हारी रह का रहा हम को हर तरफ़ धोका

चले जिधर को सो बे-इख़्तियार हो के चले

दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'

ज़ोफ़ ने हर्फ़-ए-शिकायत कभी आने दिया

तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी

कि हाल उस को है मालूम हू-ब-हू मेरा

हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं

गिरता हूँ आब-ए-ख़ंजर-ओ-शमशीर देख कर

पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा

या-रब गया है कौन ये सर पर उड़ा के ख़ाक

फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से

हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया

आप को ख़ून के आँसू ही रुलाना होगा

हाल-ए-दिल कहने को हम अपना अगर बैठ गए

लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'

हो गया आन के होशियार तिरे कूचे में

वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी

हम बात भी ख़ल्वत से निकलने नहीं देते

गुलशन-ए-ख़ुल्द में हर-चंद कि दिल बहलाया

कूचा-ए-यार मगर दिल से भुलाया गया

कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन

ख़ून होने के लिए उस ने जिगर छोड़ दिया

सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो

फिर पाओगे अगर उस ने ये घर छोड़ दिया

बीच में है मेरे उस के तू ही आह-ए-हज़ीं

सुल्ह क्यूँकर होवे जब तक दरमियाँ कोई हो

आए सामने मेरे अगर नहीं आता

मुझे तो उस के सिवा कुछ नज़र नहीं आता

तेरे कहने से मैं अब लाऊँ कहाँ से नासेह

सब्र जब इस दिल-ए-मुज़्तर को ख़ुदा ने दिया

खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना

बहका दिया है सब को दिखला के हाल अपना

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