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ज़की तारिक़

ग़ज़ल 9

अशआर 9

अजनबी ख़ुशबू की आहट से महक उट्ठा बदन

क़हक़हों के लम्स से ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ रौशन हुआ

गुमान होता है मुझ को तुम्हारे आने का

हवा इधर से दबे पाँव जब गुज़रती है

'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे

हमें रास कभी आया साएबान कोई

दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है

वो इश्क़ क्या है जो दामन को पाक चाहता है

हम भी कहने लगे हैं रात को रात

हम भी गोया ख़राब होने लगे

पुस्तकें 4

 

वीडियो 10

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
At Baghpat All India Mushaira Kavi Sammelan

ज़की तारिक़

इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा

ज़की तारिक़

कौन कहता है गुम हुआ परतव

ज़की तारिक़

तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है

ज़की तारिक़

दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है

ज़की तारिक़

नूर ये किस का बसा है मुझ में

ज़की तारिक़

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

भरे तो कैसे परिंदा भरे उड़ान कोई

ज़की तारिक़

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता

ज़की तारिक़

ऑडियो 9

इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा

कौन कहता है गुम हुआ परतव

तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है

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