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नज़्म
बरसात की बहारें
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
सब्ज़ों पे बीर भूटी टीलों उपर धतूरे
नज़ीर अकबराबादी
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गीत
दरिया की तरफ़ बल खाती है इक सारस की लम्बी गर्दन
जोते हुए खेत में सोती है इक बीर-बहूटी की दुल्हन
सलाम संदेलवी
नज़्म
ख़ाक-ए-हिंद
सब सूर-बीर अपने इस ख़ाक में निहाँ हैं
टूटे हुए खँडर हैं या उन की हड्डियाँ हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले