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ग़ज़ल
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
शिकवा
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तिरा
क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तिरा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को
बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को