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नज़्म
इतना मालूम है!
हर सतर में मिरा चेहरा उभर आया होगा
जब मिली होगी उसे मेरी अलालत की ख़बर
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
वो किसी की झील आँखें वो मिरी जुनूँ-मिज़ाजी
कभी डूबना उभर कर कभी डूब कर उभरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
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नज़्म
ख़्वाब जो बिखर गए
मगर लहू के दाग़ भी उभर गए ये क्या हुआ
इन्हें छुपाऊँ किस तरह नक़ाब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
हास्य शायरी
रात उस मिस से कलीसा में हुआ मैं दो-चार
हाए वो हुस्न वो शोख़ी वो नज़ाकत वो उभार