aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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Idaratul Musannifeen, Jhang
Publisher
teraa Gam hai to Gam-e-dahr kaa jhag.Daa kyaa haiterii suurat se hai aalam me.n bahaaro.n ko sabaat
क्या पता है कि लाहौर जो अब पाकिस्तान में है कल हिंदोस्तान में चला जाये या सारा हिंदोस्तान ही पाकिस्तान बन जाये और ये भी कौन सीने पर हाथ रख कर कह सकता था कि हिंदोस्तान और पाकिस्तान दोनों किसी दिन सिरे से ग़ायब ही हो जाएं।उस सिख पागल के केस छिदरे हो कर बहुत मुख़्तसर रह गए थे। चूँकि बहुत कम नहाता था, इसलिए दाढ़ी और सर के बाल आपस में जम गए थे, जिसके बाइस उसकी शक्ल बड़ी भयानक हो गई थी। मगर आदमी बेज़रर था। पंद्रह बरसों में उसने कभी किसी से झगड़ा फ़साद नहीं किया था। पागलखाने के जो पुराने मुलाज़िम थे, वो उसके मुतअल्लिक़ जानते थे कि टोबाटेक सिंह में उसकी कई ज़मीनें थीं। अच्छा खाता-पीता ज़मींदार था कि अचानक दिमाग़ उलट गया।
nayaa ik rishta paidaa kyuu.n kare.n hambichha.Dnaa hai to jhag.Daa kyuu.n kare.n ham
इसके इलावा उसे उनका रंग भी बिल्कुल पसंद न था। जब कभी वो गोरे के सुर्ख़ व सपेद चेहरे को देखता तो उसे मतली आ जाती, न मालूम क्यों। वो कहा करता था कि “उन के लाल झुर्रियों भरे चेहरे देख कर मुझे वो लाश याद आ जाती है जिसके जिस्म पर से ऊपर की झिल्ली गल गल कर झड़ रही हो!”जब किसी शराबी गोरे से उसका झगड़ा हो जाता तो सारा दिन उसकी तबीयत मुक़द्दर रहती और वो शाम को अड्डे में आकर हल मार्का सिगरेट पीते या हुक़्क़े के कश लगाते हुए उस गोरे को जी भर कर सुनाया करता। ये मोटी गाली देने के बाद वो अपने सर को ढीली पगड़ी समेत झटका दे कर कहा करता था, “आग लेने आए थे। अब घर के मालिक ही बन गए हैं। नाक में दम कर रखा है इन बंदरों की औलाद ने। यूं रोब गांठते हैं, गोया हम उनके बावा के नौकर हैं।”
karaa to luu.ngaa ilaaqa KHaalii mai.n la.D-jhaga.D karmagar jo us ne dilo.n pe qabze kiye hu.e hai.n
The tussle between temple and harem and those associated with them are too old. They are acquiring unwelcome proportions now. These have been the subject of concern for the poets and they have picked on the keepers of these institutions to satirise their limited perspective as well as their follies and foibles. Going through these verses, you would realise how liberated is the world of poetry and how so very full of life it has been.
झगड़جھگڑ
fight
बूढ़ा बाप ग़म-ओ-अंदोह से चूर घर पहुंचा और आमिना को सारी दास्तान सुना दी। आमिना को इस क़दर सदमा पहुंचा कि पागल हो गई। चंदू पर पे-दर-पे इतने मसाएब आए कि उसकी सारी दौलत उजड़ गई, भाई ने भी आँखें फेर लीं। बीवी लड़-झगड़ कर अपने मैके चली गई। अब उसको आमिना याद आई, वो उससे मिलने के लिए गया। उसका बेटा जमील हड्डियों का ढांचा उससे घर के बाहर मिला। उसने उसको प्यार किया और आमिना के मुतअल्लिक़ उससे पूछा।
मोहम्मद शफ़ीक़ तूसी तक़रीबन डेढ़ महीना आता रहा। कई रातें भी उसने ज़ीनत के साथ बसर कीं लेकिन वो ऐसा आदमी नहीं था जो किसी औरत का सहारा बन सके। बाबू गोपीनाथ ने एक रोज़ अफ़सोस और रंज के साथ कहा, “शफ़ीक़ साहब तो ख़ाली ख़ाली जैंटलमैन ही निकले। ठस्सा देखिए, बेचारी ज़ीनत से चार चादरें, छः तकिए के ग़लाफ़ और दो सौ रुपये नक़द हथिया कर ले गए। सुना है आजकल एक लड़की अल...
यज़दानी और सन्ता सिंह निहायत उ’म्दा वर्सटेड के सूट पहने नेक आ’लम,( क्लब के सेक्रेटरी) से झगड़ रहे थे। नेक आ’लम कह रहा था कि वो तफ़रीह क्लब को परेल क्लब और ‘बार’ बनते हुए कभी नहीं देख सकता। उस वक़्त मैंने एक मायूस आदमी के मख़सूस अंदाज़ में जेब में हाथ डाला और कहा, “बीवी बच्चों के लिए कुछ ख़रीदना क़ुदरत के नज़दीक गुनाह है। इस हिसाब से परेल खेलने के लिए तो ...
सुब्ह मैं गली के दरवाज़े में खड़ी सब्ज़ी वाले से गोभी की क़ीमत पर झगड़ रही थी। ऊपर बावर्ची-ख़ाने में दाल चावल उबालने के लिए चढ़ा दिए थे। मुलाज़िम सौदा लेने के लिए बाज़ार जा चुका था। ग़ुस्ल-ख़ाने में वक़ार साहिब चीनी की चिलमची के ऊपर लगे हुए मद्धम आईने में अपनी सूरत देखते हुए गुनगुना रहे थे और शेव करते जाते थे। मैं सब्ज़ी वाले से बहस करने के साथ-साथ सोचने ...
milii hai duKHtar-e-raz la.D-jhaga.D ke qaazii sejihaad kar ke jo aurat mile haraam nahii.n
“सच्च फ़रमाया दाता साहब ने,” एक दाढ़ी वाले शख़्स ने ठंडा साँस लिया। फिर उसकी आवाज़ में रिक़्क़त पैदा हो गई। “सच्च फ़रमाया दाता साहब ने। आदमी बहुत हक़ीर मख़लूक़ है और ये दुनिया... आग की लपेट में आया हुआ पहाड़... बे-शक... बे-शक उसकी आँखों से आँसू जारी हो गए। क्या स्टॉप नहीं आएगा? उसने सारे क़िस्से से परेशान हो कर सोचा। फिर फ़ौरन ही ख़्याल आया कि आ भी गया तो फिर? वो तो ग़लत बस में सवार है। और उस वक़्त उसे याद आया कि उसने मॉडल टाउन का टिकट ख़रीदा है। यानी मैं मॉडल टाउन जा रहा हूँ। मगर क्यों? बस एक शोर के साथ दौड़ी चली जा रही थी। उसके अंजर-पिंजर तेज़ चलने से कुछ इस तरह खड़बड़ा रहे थे कि उसे वहशत होने लगी। उसने मुसाफ़िरों पर नज़र डाली उसने देखा कि वो मुसाफ़िर जो अभी क़दम-क़दम जगह के लिए झगड़ रहे थे ख़ामोश हैं। उनके चेहरों पर हवाईयां उड़ रही हैं। उसकी वो पिछली बेज़ारी, उस वक़्त हमदर्दी के जज़्बे में बदल गई थी। उसका जी चाहा कि वो खड़ा हो कर उनसे कहे कि दोस्तों हम ग़लत बस में सवार हो गए हैं मगर उसे फ़ौरन ही ख़्याल आया कि वो ये कहे तो कितना बेवक़ूफ़ बनाया जाएगा। ग़लत बस में तो वो सवार हुआ है बाक़ी सब सवारियाँ सही सवार हुई हैं। तो एक ही बस ब यक वक़्त सही भी होती है ग़लत भी होती है? एक ही बस ग़लत रास्ते पर भी चलती है और सही रास्ते पर भी चलती है? ये सूरत-ए-हाल उसे अजीब लगी और उसने उसके ज़हन में अच्छे ख़ासे एक माबाद-अल-तबीअयाती सवाल की शक्ल इख़्तेयार करली। फिर उसने इस गुत्थी को यूँ सुलझाया कि बस कोई ग़लत नहीं होती। बसों के तो रास्ते और स्टॉप और टर्मैंस मुक़र्रर हैं। सब बसें अपने अपने रास्तों पर रवाँ-दवाँ हैं। ग़लत और सही मुसाफ़िर होते हैं। और सोने वाले शख़्स के सर के बोझ से उस का कांधा टूटने लगा था। मगर इस मर्तबा उसने हमदर्दाना उस पर नज़र डाली और रश्क के साथ सोचा कि सोने वाला हमसफ़र आराम में है। हमसफ़र? उसे फ़ौरन याद आया कि वो तो ग़लत बस में है और उसके साथ वाला सही बस में है फिर वो दोनों हमसफ़र कहाँ हुए। उसने बस के सारे मुसाफ़िरों पर नज़र दौड़ाई। तो मेरा कोई हमसफ़र नहीं है।
शायद औरों के लिए “ख़ानम” कुछ भी नहीं। लेकिन सिवाए लिखने वाले के और बाक़ी सारे कैरेक्टर दुरुस्त और ज़िन्दा हैं भाई साहब, भाई जान, नानी-अम्माँ, शैख़ानी, वालिद साहब, भतीजे, भंगी बहिश्ती ये सब के सब हैं और रहेंगे। यही होता था बिल्कुल यही और अब भी सब घरों में ऐसा ही होता है। कम-अज़-कम मेरे घर में तो था और एक-एक लफ़्ज़ घर की सच्ची तस्वीर है। जब अज़ीम बेग लिखत...
“न आए।”“ये अजीब मंतिक़ है... मैं कोई लड़-झगड़ कर तो नहीं जा रहा।”
ज़रा ख़्याल फ़रमाइए, शहर के एक कोने में एक वैश्या का मकान है, रात की स्याही में एक मर्द जो अपने सीने में उससे भी ज़्यादा स्याह दिल रखता है, अपने जिस्म की आग ठंडी करने के लिए बेधड़क उसके मकान में चला जाता है। वैश्या उस मर्द के दिल की स्याही से वाक़िफ़ है। उससे नफ़रत भी करती है। अच्छी तरह जानती है कि उसका वजूद दामन-ए-इन्सानियत पर एक बदनुमा धब्बा है। उसक...
chalte chalte na KHalish kar falak-e-duu.n se 'naziir'faa.eda kyaa hai kamiine se jhaga.D kar chalnaa
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