aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मैगी एलियट 80 बरस की पुर-वक़ार ख़ातून हैं, बड़े क़ाएदे और क़रीने से सजती हैं। या'नी अपनी उम्र, अपना रुत्बा, अपना माहौल देखकर सजती हैं। लबों पर हल्की सी लिपस्टिक, बालों में धीमी सी ख़ुश्बू, रुख़्सारों पर रूज़ का शाइबा सा, इतना हल्का कि गालों पर रंग मा'लूम न हो,...
सुधा ख़ूबसूरत थी न बदसूरत, बस मामूली सी लड़की थी। साँवली रंगत, साफ़ सुथरे हाथ पांव, मिज़ाज की ठंडी मगर घरेलू, खाने पकाने में होशियार, सीने-पिरोने में ताक़, पढ़ने-लिखने की शौक़ीन, मगर न ख़ूबसूरत थी न अमीर, न चंचल, दिल को लुभाने वाली कोई बात इस में न थी। बस...
अब तो ये ग़ालीचा पुराना हो चुका, लेकिन आज से दो साल पहले जब मैंने इसे हज़रत गंज में एक दुकान से ख़रीदा था, उस वक़्त ये ग़ालीचा बिल्कुल मा’सूम था, इसकी जल्द मा’सूम थी। इसकी मुस्कुराहट मा’सूम थी, इसका हर रंग मा’सूम था। अब नहीं, दो साल पहले, अब...
मैं ग्रांट मेंडीकल कॉलेज कलकत्ता में डाक्टरी का फाईनल कोर्स कर रहा था और अपने बड़े भाई की शादी पर चंद रोज़ के लिए लाहौर आ गया था। यहीं शाही मुहल्ले के क़रीब कूचा ठाकुर दास में हमारा जहां आबाई घर था, मेरी मुलाक़ात पहली बार ताई इसरी से हुई।...
अभी-अभी मेरे बच्चे ने मेरे बाएं हाथ की छंगुलिया को अपने दाँतों तले दाब कर इस ज़ोर का काटा कि मैं चिल्लाए बग़ैर ना रह सका और मैंने गु़स्सो में आकर उसके दो, तीन तमांचे भी जड़ दिए बेचारा उसी वक़्त से एक मासूम पिल्ले की तरह चिल्ला रहा है।...
(ख़ास “हमारा अदब” के लिए) आज रात अपनी थी क्योंकि जेब में पैसे नहीं थे। जब जेब में पैसे हों तो रात मुझे अपनी मा’लूम नहीं होती, उस वक़्त रात मरीन ड्राईव पर थिरकने वाली गाड़ियों की मा’लूम होती है। जगमगाते हुए क़ुमक़ुमों की मा’लूम होती है अमीबा सीडर होटल...
जब मैं पेशावर से चली, तो मैंने छकाछक इत्मीनान का साँस लिया। मेरे डिब्बों में ज़्यादा-तर हिंदू लोग बैठे हुए थे। ये लोग पेशावर से होते हुए मरदान से, कोहाट से, चारसद्दा से, ख़ैबर से, लंडी कोतल से, बन्नूँ, नौशेरा से, मानसहरा से आए थे और पाकिस्तान में जान-ओ-माल को...
मैंने इससे पहले हज़ार बार कालू भंगी के बारे में लिखना चाहा है लेकिन मेरा क़लम हर बार ये सोच कर रुक गया है कि कालू भंगी के मुताल्लिक़ लिखा ही क्या जा सकता है। मुख़्तलिफ़ ज़ावियों से मैंने उसकी ज़िंदगी को देखने, परखने, समझने की कोशिश की है, लेकिन...
दो आशिक़ों में तवाज़ुन बरक़रार रखना, जब के दोनों आई सी एस के अफ़राद हों, बड़ा मुश्किल काम है। मगर रम्भा बड़ी ख़ुश-उस्लूबी से काम को सर-अंजाम देती थी। उसके नए आशिक़ों की खेप उस हिल स्टेशन में पैदा हो गई थी। क्योंकि रम्भा बेहद ख़ूबसूरत थी। उसका प्यारा-प्यारा चेहरा...
आज नई हीरोइन की शूटिंग का पहला दिन था। मेक-अप रुम में नई हीरोइन सुर्ख़ मख़मल के गद्दे वाले ख़ूबसूरत स्टूल पर बैठी थी और हेड मेक-अप मैन उसके चेहरे का मेक-अप कर रहा था। एक असिस्टेंट उसके दाएँ बाज़ू का मेक-अप कर रहा था, दूसरा असिस्टेंट उसके बाएँ बाज़ू...
(1) वो आदमी जिसके ज़मीर में कांटा है...
ये मेरा बच्चा है। आज से डेढ़ साल पहले इसका कोई वजूद नहीं था। आज से डेढ़ साल पहले ये अपनी माँ के सपनों में था। मेरी तुंद-ओ-तेज़ जिंसी ख़्वाहिश में सो रहा था। जैसे दरख़्त बीज में सोया रहता है। मगर आज से डेढ़ बरस पहले उस का कहीं...
रात को बड़े ज़ोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियट के लाॅन में जामुन का एक दरख़्त गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे मा'लूम पड़ा कि दरख़्त के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया। क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिटेंडेंट...
रात की थकन से उसके शाने अभी तक बोझल थे। आँखें ख़ुमार-आलूदा और लबों पर तरेट के डाक बंगले की बीयर का कसैला ज़ायक़ा। वो बार-बार अपनी ज़बान को होंटों पर फेर कर उसके फीके और बे-लज़्ज़त से ज़ायक़े को दूर करने की कोशिश कर रहा था। गो उस की...
चौरंघी के सुपर में रहने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि वहाँ शिकार मिल जाता है। कलकत्ता के किसी होटल में इतना अच्छा शिकार नहीं मिलता जितना सुपर में। और जितना अच्छा शिकार क्रिसमस के दिनों में मिलता है उतना किसी दूसरे सीज़न में नहीं मिलता। मैं अब तक...
ڈھوتے، فرش صاف کرتے اور گالیاں کھاتے پایا۔ اسے ان باتوں کا کبھی ملال نہ ہوا کیونکہ اسے معلوم تھا کہ کام کرنے اور گالیاں کھانے کے بعد ہی روٹی ملتی ہے اور اس کی قسم والے لوگوں کو ایسے ہی ملتی ہے۔ علاوہ ازیں سدھو حلوائی کے گھر میں...
(بچوں کے لیے) ان تمام رفیقوں کے نام جو زندگی کے لیے اِک نیا قاعدہ مرتب کر رہے ہیں! الف۔ انسان بچو ہم سب انسان ہیں۔ جس طرح الف اس قاعدے کا پہلا حرف ہے اسی طرح انسان بھی ہماری زندگی کاپہلا حرف ہے۔ ہماری سماج کی اکائی! ہم تم...
अप्रैल का महीना था। बादाम की डालियां फूलों से लद गई थीं और हवा में बर्फ़ीली ख़ुनकी के बावजूद बहार की लताफ़त आ गई थी। बुलंद-ओ-बाला तंगों के नीचे मख़मलीं दूब पर कहीं कहीं बर्फ़ के टुकड़े सपीद फूलों की तरह खिले हुए नज़र आ रहे थे। अगले माह तक...
पहले दिन जब उसने वक़ार को देखा तो वो उसे देखती ही रह गई थी। अस्मा की पार्टी में किसी ने उसे मिलवाया था, “इनसे मिलो ये वक़ार हैं।” वक़ार उसके लिए मुकम्मल अजनबी था मगर उस अजनबी-पन में एक अजीब सी जान-पहचान थी। जैसे बरसों या शायद सदियों के...
یہ کہانی، جومیں آپ کوسنارہاہوں کل تک نہ ہوئی تھی۔ کل رات کے دوبجے تک اس کہانی کے ہونے کاکوئی امکان نہ تھا۔ کل رات کے دوبجے تک جب میں سوچتا سوچتاتھک گیااوریہ کہانی نہ آئی تو میں اس کی تلاش میں گھومتا گھومتا چوپاٹی کی طرف نکل گیا۔ یہاں...
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