Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

बदसूरती

सआदत हसन मंटो

बदसूरती

सआदत हसन मंटो

MORE BYसआदत हसन मंटो

    स्टोरीलाइन

    यह दो बहनों, हामिदा और साजिदा की कहानी है। साजिदा बहुत ख़ूबसूरत है, जबकि हामिदा बहुत बदसूरत है। साजिदा को एक लड़के से मोहब्बत हो जाती है, तो हामिदा को बहुत दुःख होता है। इस बात को लेकर उन दोनों के बीच झगड़ा भी होता है, पर फिर दोनों बहनें सुलह कर लेती है और साजिदा की शादी हामिद से हो जाती है। एक साल बाद साजिदा अपने शौहर के साथ हामिदा से मिलने आती है। रात को कुछ ऐसा होता है कि सुबह होते ही हामिद साजिदा को तलाक़़ दे देता है और कुछ अरसे बाद हामिदा से शादी कर लेता है।

    साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी।

    उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात करता। साजिदा ख़ुश शक्ल थी मगर उसके साथ उसे बनना सँवरना भी आता था।

    उसके मुक़ाबले में हामिदा बहुत सीधी साधी थी। उसके ख़द्द-ओ-ख़ाल भी पुरकशिश थे। साजिदा बड़ी चंचल थी। दोनों जब कॉलेज में पढ़ती थीं तो साजिदा ड्रामों में हिस्सा लेती। उसकी आवाज़ भी अच्छी थी, सुर में गा सकती थी। हामिदा को कोई पूछता भी नहीं था।

    कॉलेज की तालीम से फ़राग़त हुई तो उनके वालिदैन ने उनकी शादी के मुतअल्लिक़ सोचना शुरू किया। साजिदा के लिए कई रिश्ते तो चुके थे, मगर हामिदा बड़ी थी इसलिए वो चाहते थे कि पहले उसकी शादी हो।

    उसी दौरान में साजिदा की एक ख़ूबसूरत लड़के से ख़त-ओ-किताबत शुरू होगई जो उस पर बहुत दिनों से मरता था। ये लड़का अमीर घराने का था। एम.ए. कर चुका था और आला तालीम हासिल करने के लिए अमरीका जाने की तैयारियां कर रहा था। उसके माँ-बाप चाहते थे कि उसकी शादी हो जाए ताकि वो बीवी को अपने साथ ले जाए।

    हामिदा को मालूम था कि उसकी छोटी बहन से वो लड़का बेपनाह मोहब्बत करता है। एक दिन जब साजिदा ने उसे उस लड़के का इश्क़िया जज़्बात से लबरेज़ ख़त दिखाया तो वो दिल ही दिल में बहुत कुढ़ी, इसलिए कि उसका चाहने वाला कोई भी नहीं था।

    उसने उस ख़त का हर लफ़्ज़ बार-बार पढ़ा और उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसके दिल में सूईयां चुभ रही हैं, मगर उसने उस दर्द-ओ-कर्ब में भी एक अजीब क़िस्म की लज़्ज़त महसूस की, लेकिन वो अपनी छोटी बहन पर बरस पड़ी,“तुम्हें शर्म नहीं आती कि ग़ैर मर्दों से ख़त-ओ-किताबत करती हो!

    साजिदा ने कहा, “बाजी, इसमें क्या ऐब है?”

    “ऐब!... सरासर ऐब है। शरीफ़ घरानों की लड़कियां कभी ऐसी बेहूदा हरकतें नहीं करतीं... तुम उस लड़के हामिद से मोहब्बत करती हो?”

    “हाँ!”

    “लानत है तुम पर!”

    साजिदा भन्ना गई, “देखो बाजी, मुझ पर लानतें भेजो... मोहब्बत करना कोई जुर्म नहीं।”

    हामिदा चिल्लाई, “मोहब्बत मोहब्बत... आख़िर ये क्या बकवास है?”

    साजिदा ने बड़े तंज़िया अंदाज़ में कहा, “जो आपको नसीब नहीं।”

    हामिदा की समझ में आया कि वो क्या कहे। चुनांचे खोखले ग़ुस्से में आकर उसने छोटी बहन के मुँह पर ज़ोर का थप्पड़ मार दिया... इसके बाद दोनों एक दूसरे से उलझ गईं।

    देर तक उन में हाथापाई होती रही। हामिदा उसको ये कोसने देती रही कि वो एक नामहरम मर्द से इश्क़ लड़ा रही है और साजिदा उससे ये कहती रही कि वो जलती है इसलिए कि उसकी तरफ़ कोई मर्द आँख उठा कर भी नहीं देखता।

    हामिदा डीलडौल के लिहाज़ से अपनी छोटी बहन के मुक़ाबले में काफ़ी तगड़ी थी, इसके अलावा उसे ख़ार भी थी जिसने उसके अंदर और भी क़ुव्वत पैदा करदी थी... उसने साजिदा को ख़ूब पीटा। उसके घने बालों की कई ख़ूबसूरत लटें नोच डालीं और ख़ुद हांपती-हांपती अपने कमरे में जा कर ज़ार-ओ-क़तार रोने लगी।

    साजिदा ने घर में इस हादिसे के बारे में कुछ कहा... हामिदा शाम तक रोती रही। बेशुमार ख़यालात उसके दिमाग़ में आए। वो नादिम थी कि उसने महज़ इसलिए कि उससे कोई मोहब्बत नहीं करता अपनी बहन को, जो बड़ी नाज़ुक है, पीट डाला।

    वो साजिदा के कमरे में गई। दरवाज़े पर दस्तक दी और कहा, “साजिदा!

    साजिदा ने कोई जवाब दिया।

    हामिदा ने फिर ज़ोर से दस्तक दी और रोनी आवाज़ में पुकारी, “साजी! मैं माफ़ी मांगने आई हूँ... ख़ुदा के लिए दरवाज़ा खोलो।”

    हामिदा दस-पंद्रह मिनट तक दहलीज़ के पास आँखों में डबडबाए आँसू लिए खड़ी रही, उसे यक़ीन नहीं था कि उसकी बहन दरवाज़ा खोलेगी, मगर वो खुल गया।

    साजिदा बाहर निकली और अपनी बड़ी बहन से हमआग़ोश होगई, “क्यूँ बाजी... आप रो क्यूँ रही हैं?”

    हामिदा की आँखों में से टप-टप आँसू गिरने लगे, “मुझे अफ़सोस है कि तुमसे आज बेकार लड़ाई होगई।”

    “बाजी... मैं बहुत नादिम हूँ कि मैंने आपके मुतअल्लिक़ ऐसी बात कह दी जो मुझे नहीं कहनी चाहिए थी।”

    “तुमने अच्छा किया साजिदा... मैं जानती हूँ कि मेरी शक्ल-ओ-सूरत में कोई कशिश नहीं... ख़ुदा करे तुम्हारा हुस्न क़ायम रहे।”

    “बाजी!.. मैं क़तअन हसीन नहीं हूँ। अगर मुझ में कोई ख़ूबसूरती है तो मैं दुआ करती हूँ कि ख़ुदा उसे मिटा दे... मैं आपकी बहन हूँ... अगर आप मुझे हुक्म दें तो मैं अपने चेहरे पर तेज़ाब डालने के लिए तैयार हूँ।”

    “कैसी फ़ुज़ूल बातें करती हो... क्या बिगड़े हुए चेहरे के साथ तुम्हें हामिद क़ुबूल कर लेगा?”

    “मुझे यक़ीन है।”

    “किस बात का?”

    “वो मुझसे इतनी मोहब्बत करता है कि अगर मैं मर जाऊं तो वो मेरी लाश से शादी करने के लिए तैयार होगा।”

    “ये महज़ बकवास है।”

    “होगी... लेकिन मुझे उसका यक़ीन है... आप उसके सारे ख़त पढ़ती रही हैं... क्या उनसे आपको ये पता नहीं चला कि वो मुझसे क्या क्या पैमान कर चुका है।”

    “साजी...” ये कह कर हामिदा रुक गई। थोड़े वक़्फ़े के बाद उसने लर्ज़ां आवाज़ में कहा, “मैं अह्द-ओ-पैमान के मुतअल्लिक़ कुछ नहीं जानती, और रोना शुरू कर दिया।

    उसकी छोटी बहन ने उसे गले से लगाया। उसको प्यार किया और कहा, “बाजी, आप अगर चाहें तो मेरी ज़िंदगी सँवर सकती है।”

    “कैसे?”

    “मुझे हामिद से मोहब्बत है... मैं उससे वादा कर चुकी हूँ कि अगर मेरी कहीं शादी होगी तो तुम्हीं से होगी।”

    “तुम मुझसे क्या चाहती हो?”

    “मैं ये चाहती हूँ कि आप इस मुआमले में मेरी मदद करें। अगर वहां से पैग़ाम आए तो आप उसके हक़ में गुफ़्तुगू कीजिए... अम्मी और अब्बा आपकी हर बात मानते हैं।”

    “मैं इंशाअल्लाह तुम्हें नाउम्मीद नहीं करूंगी।”

    साजिदा की शादी होगई, हालाँकि उसके वालिदैन पहले हामिदा की शादी करना चाहते थे... मजबूरी थी, क्या करते। साजिदा अपने घर में ख़ुश थी। उसने अपनी बड़ी बहन को शादी के दूसरे दिन ख़त लिखा जिसका मज़मून कुछ इस क़िस्म का था:

    “मैं बहुत ख़ुश हूँ... हामिद मुझसे बेइंतिहा मोहब्बत करता है। बाजी... मोहब्बत अजीब-ओ-गरीब चीज़ है... मैं बेहद मसरूर हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है कि ज़िंदगी का सही मतलब अब मेरी समझ में आया है... ख़ुदा करे कि आप भी इस मसर्रत से महज़ूज़ हों।”

    इसके अलावा और बहुत सी बातें उस ख़त में थीं जो एक बहन अपनी बहन को लिख सकती है।

    हामिदा ने ये पहला ख़त पढ़ा और बहुत रोई। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसका हर लफ़्ज़ एक हथौड़ा है जो उसके दिल पर ज़र्ब लगा रहा है

    इसके बाद उसको और भी ख़त आए जिनको पढ़-पढ़ के उसके दिल पर छुरियां चलती रहीं। रो रो कर उसने अपना बुरा हाल कर लिया था।

    उसने कई मर्तबा कोशिश की कि कोई राह चलता जवान लड़का उसकी तरफ़ मुतवज्जा हो, मगर नाकाम रही।

    उसे इस अर्से में एक अधेड़ उम्र का मर्द मिला। बस में मुडभेड़ हुई। वो उससे मरासिम क़ायम करना चाहता था मगर हामिदा ने उसे पसंद किया। वो बहुत बदसूरत था।

    दो बरस के बाद उसकी बहन साजिदा का ख़त आया कि वो और उसका ख़ाविंद आर हे हैं।

    वो आए। हामिदा ने मुनासिब मौज़ूं तरीक़ पर उनका ख़ैर मक़दम किया। साजिदा के ख़ाविंद को अपने कारोबार के सिलसिले में एक हफ़्ते तक क़याम करना था।

    साजिदा से मिल कर उसकी बड़ी बहन बहुत ख़ुश हुई... हामिद बड़ी ख़ुश अख़लाक़ी से पेश आया। वो उससे भी मुतास्सिर हुई।

    वो घर में अकेली थी, इसलिए कि उसके वालिदैन किसी काम से सरगोधा चले गए थे। गर्मियों का मौसम था। हामिदा ने नौकरों से कहा कि वो बिस्तरों का इंतिज़ाम सहन में कर दे और बड़ा पंखा लगा दिया जाए।

    ये सब कुछ होगया... लेकिन हुआ ये कि साजिदा किसी हाजत के तहत ऊपर कोठे पर गई और देर तक वहीं रही। हामिद कोई इरादा कर चुका था। आँखें नींद से बोझल थीं। उठ कर साजिदा के पास गया और उसके साथ लेट गया... लेकिन उसकी समझ में आया कि वो ग़ैर सी क्यों लगती है। क्योंकि वो शुरू-शुरू में बेएतनाई बरतती रही... आख़िर में वो ठीक होगई।

    साजिदा कोठे से उतर कर नीचे आई और उसने देखा...

    सुबह को दोनों बहनों में सख़्त लड़ाई हुई... हामिद भी उसमें शामिल था। उसने गर्मा गर्मी में कहा, “तुम्हारी बहन, मेरी बहन है... तुम क्यों मुझ पर शक करती हो?

    हामिद ने दूसरे रोज़ अपनी बीवी साजिदा को तलाक़ दे दी और दो-तीन महीनों के बाद हामिदा से शादी कर ली... उसने अपने एक दोस्त से जिसको उस पर एतराज़ था, सिर्फ़ इतना कहा, “ख़ूबसूरती में ख़ुलूस होना नामुम्किन है... बदसूरती हमेशा पुरख़ुलूस होती है।”

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    अज्ञात

    अज्ञात

    अज्ञात

    अज्ञात

    स्रोत :
    • पुस्तक : پھند نے

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free
    बोलिए