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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

नोस्टलजिया पर शेर

गुज़रे हुए दिनों को

याद करके छा जाने वाली उदासी कुछ मीठी सी होती। उस का ज़ायक़ा तो आपने चखा ही होगा। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए जो हम में से हर शख़्स के माज़ी की बा-ज़दीद करता है और गुज़रे हुए लम्हों की यादों को ज़िंदा करता है।

यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में

लखनऊ फिर कभी दिखलाए मुक़द्दर मेरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

लकीरें खींच के मिट्टी पे बैठ जाता हूँ

यहाँ मकाँ था ये बाज़ार ये गली उस की

अशरफ़ यूसुफ़ी

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है

अहमद मुश्ताक़

'जमाल' हर शहर से है प्यारा वो शहर मुझ को

जहाँ से देखा था पहली बार आसमान मैं ने

जमाल एहसानी

असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे

कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे

मुज़्तर ख़ैराबादी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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