नोस्टलजिया शायरी
गुज़रे हुए दिनों को याद करके छा जाने वाली उदासी कुछ मीठी सी होती। उस का ज़ायक़ा तो आपने चखा ही होगा। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए जो हम में से हर शख़्स के माज़ी की बा-ज़दीद करता है और गुज़रे हुए लम्हों की यादों को ज़िंदा करता है।
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
'जमाल' हर शहर से है प्यारा वो शहर मुझ को
जहाँ से देखा था पहली बार आसमान मैं ने
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे
यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में
लखनऊ फिर कभी दिखलाए मुक़द्दर मेरा