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चाँद पर 15 बेहतरीन शेर

चाँद उर्दू शाएरी का एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा

इफ़्तिख़ार नसीम

हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल

हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

हर एक रात को महताब देखने के लिए

मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए

अज़हर इनायती

ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है

बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब

देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है

अहमद कमाल परवाज़ी

पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर

इक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी

सरवत हुसैन

देखा हिलाल-ए-ईद तो तुम याद गए

इस महवियत में ईद हमारी गुज़र गई

अज्ञात

वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा

तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं

फ़रहत एहसास

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है

चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

चाँद में तू नज़र आया था मुझे

मैं ने महताब नहीं देखा था

अब्दुर्रहमान मोमिन

लुत्फ़-ए-शब-ए-मह दिल उस दम मुझे हासिल हो

इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

ईद का चाँद तुम ने देख लिया

चाँद की ईद हो गई होगी

इदरीस आज़ाद

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा

इब्न-ए-इंशा

कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए

लहू मिरे ही जिगर में था तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी

अहमद मुश्ताक़

रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर'

इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन

क़मर जलालवी

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