ईद के चाँद : न जाने कब से तेरा इन्तिज़ार था
ईद का चाँद इस लिए भी बहुत ख़ास होता है क्यों कि उसे देखने के अगले रोज़ ही ईद का दिन होता है । इस लिए उसे देखने के लिए हर कोई बेक़रार रहता है । उर्दू शायरी में ईद के चाँद को शाइरों ने बहुत एहमीयत दी है और इसे मुख़्तलिफ़ ढंग से बाँधा है । इस कलेक्शन को पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए ।
ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए
इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
छुप गया ईद का चाँद निकल कर देर हुई पर जाने क्यों
नज़रें अब तक टिकी हुई हैं मस्जिद के मीनारों पर
क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है
अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है