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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हमने क्या खोया हमने क्या पाया?

हम हमेशा चाहते हैं कि हमारे माल-ओ-दौलत और दूसरी चीज़ों में हमेशा नफ़ा और फ़ायदा हो। अगर किसी चीज़ में नुक़्सान होता है तो हम दूसरी चीज़ों से फ़ायदे की उम्मीद लगा लेते हैं और इस तरह नफ़ा, नुक़्सान पर मुन्हसिर ज़िंदगी की गाड़ी चलती रहती है।इस मौज़ू पर कुछ अशआर का इंतिख़ाब किया गया है। पढ़िएऔर लुत्फ़ लीजिए।

उस ने पूछा था क्या हाल है

और मैं सोचता रह गया

अजमल सिराज

इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़अ है हम को क्या समझाते हो

हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया

जाँ निसार अख़्तर

जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं

मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर

शहज़ाद अहमद

मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में

वही दुख-भरी ज़मीं है वही ग़म का आसमाँ है

बशीर बद्र

क्या मिला अर्ज़-ए-मुद्दआ कर के

बात भी खोई इल्तिजा कर के

मोमिन ख़ाँ मोमिन

क्या मिला अर्ज़-ए-मुद्दआ से 'फ़िगार'

बात कहने से और बात गई

फ़िगार उन्नावी

पहली साँस पे मैं रोया था आख़िरी साँस पे दुनिया

इन साँसों के बीच में हम ने क्या खोया क्या पाया

प्रेम भण्डारी

ज़रा सी बात पे क्या क्या खो दिया मैं ने

जो तुम ने खोया है उस का शुमार तुम भी करो

फ़राग़ रोहवी

कैसा अजीब आया है इस साल का बजट

मुर्ग़ी का जो बजट है वही दाल का बजट

खालिद इरफ़ान

ज़ियान-ए-दिल ही इस बाज़ार में सूद-ए-मोहब्बत है

यहाँ है फ़ाएदा ख़ुद को अगर नुक़सान में रख लें

इक़बाल कौसर

टीवी का ये मज़ाक़ अदीबों के साथ है

शाएर से दुगना रख दिया क़व्वाल का बजट

खालिद इरफ़ान

बजट मैं ने देखे हैं सारे तिरे

अनोखे अनोखे ख़सारे तिरे

अनवर मसूद

बिकती है अब किताब भी कैसेट के रेट पे

कैसे बनेगा 'ग़ालिब' 'इक़बाल' का बजट

खालिद इरफ़ान

वार पुश्त पर करके क्या मिला तुम्हें आख़िर

एक पल में खो बैठे ए'तिबार जितना था

आदिल ज़ैदी

बिछड़े थे जब ये लोग महीना था जून का

सोहनी बना रही थी महींवाल का बजट

खालिद इरफ़ान

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