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पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है : मीर तक़ी मीर

मीर तक़ी मीर के जन्म के तीन सौ साल पूरे होने वाले हैं और इस मौक़े पर रेख़्ता की जानिब से एक हफ़्ते तक उनकी ज़िन्दगी और शायरी को याद कर के हैशटैग "ZikreMeer " के तहत उन्हें श्रद्धांजलि पेश की जाती रहेगी। इस सिलसिले की पहली कड़ी में मीर साहब के चंद मशहूर अशआर का कलेक्शन हाज़िर-ए -ख़िदमत है।

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए

पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

व्याख्या

मीर अपनी सहल शायरी में कोई जोड़ नहीं रखते हैं। जिस सच्चाई और आसानी के साथ वो विषयों को बयान करने की क्षमता रखते हैं उसकी मिसाल मुश्किल ही से मिलती है।

इस शे’र में मीर ने बड़ी मासूमियत और सादगी के साथ अपने महबूब के हुस्न की तारीफ़ बयान की है। ज़ाहिर है कि हुस्न की तारीफ़ के बयान में महबूब के होंटों का बयान बहुत अहम वस्तु है। मीर अपने महबूब के होंटों की नाज़ुकी मुलाइमियत या नम्रता को बयान करते हुए उपमा देते हैं और वो उपमा गुलाब के फूल की पंखुड़ी से देते हैं। गुलाब की पंखुड़ी बहुत नाज़ुक होती हैं, बहुत नरम होती हैं, इतनी नरम और इतनी नाज़ुक होती हैं कि मीर को अपने महबूब के होंटों की बनावट बिल्कुल गुलाब की पंखुड़ी की तरह नज़र आती है। गुलाब की पंखुड़ियाँ बहुत ही उचित उपमा है, जो महबूब के होंटों के लिए दी जा सकती है और मीर ने इस मुनासिब तरीन उपमा का इस्तेमाल करके ये साबित कर दिया कि उपमा के चुनाव में भी उनका कोई बदल नहीं है।

आसान लफ़्ज़ों में कहा जाये तो बात साफ़ समझ में आती है कि मीर अपने महबूब के होंटों को गुलाब की पंखुड़ी की तरह महसूस करते हैं, उसकी नाज़ुकी की या उसकी नम्रता की वजह से और इस तरह इस उपमा ने महबूब के हुस्न का बेहतरीन नक़्शा खींच दिया है।

सुहैल आज़ाद

व्याख्या

मीर अपनी सहल शायरी में कोई जोड़ नहीं रखते हैं। जिस सच्चाई और आसानी के साथ वो विषयों को बयान करने की क्षमता रखते हैं उसकी मिसाल मुश्किल ही से मिलती है।

इस शे’र में मीर ने बड़ी मासूमियत और सादगी के साथ अपने महबूब के हुस्न की तारीफ़ बयान की है। ज़ाहिर है कि हुस्न की तारीफ़ के बयान में महबूब के होंटों का बयान बहुत अहम वस्तु है। मीर अपने महबूब के होंटों की नाज़ुकी मुलाइमियत या नम्रता को बयान करते हुए उपमा देते हैं और वो उपमा गुलाब के फूल की पंखुड़ी से देते हैं। गुलाब की पंखुड़ी बहुत नाज़ुक होती हैं, बहुत नरम होती हैं, इतनी नरम और इतनी नाज़ुक होती हैं कि मीर को अपने महबूब के होंटों की बनावट बिल्कुल गुलाब की पंखुड़ी की तरह नज़र आती है। गुलाब की पंखुड़ियाँ बहुत ही उचित उपमा है, जो महबूब के होंटों के लिए दी जा सकती है और मीर ने इस मुनासिब तरीन उपमा का इस्तेमाल करके ये साबित कर दिया कि उपमा के चुनाव में भी उनका कोई बदल नहीं है।

आसान लफ़्ज़ों में कहा जाये तो बात साफ़ समझ में आती है कि मीर अपने महबूब के होंटों को गुलाब की पंखुड़ी की तरह महसूस करते हैं, उसकी नाज़ुकी की या उसकी नम्रता की वजह से और इस तरह इस उपमा ने महबूब के हुस्न का बेहतरीन नक़्शा खींच दिया है।

सुहैल आज़ाद

मीर तक़ी मीर

आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम

अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये

मीर तक़ी मीर

बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को

देर से इंतिज़ार है अपना

मीर तक़ी मीर

हमारे आगे तिरा जब किसू ने नाम लिया

दिल-ए-सितम-ज़दा को हम ने थाम थाम लिया

मीर तक़ी मीर

दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया

हमें आप से भी जुदा कर चले

मीर तक़ी मीर

हम जानते तो इश्क़ करते किसू के साथ

ले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ

मीर तक़ी मीर

गुफ़्तुगू रेख़्ते में हम से कर

ये हमारी ज़बान है प्यारे

मीर तक़ी मीर

ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत काम

आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का

मीर तक़ी मीर

किन नींदों अब तू सोती है चश्म-ए-गिर्या-नाक

मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया

मीर तक़ी मीर

जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा 'मीर' ज़ि-बस

उन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते

मीर तक़ी मीर

कुछ हो रहेगा इश्क़-ओ-हवस में भी इम्तियाज़

आया है अब मिज़ाज तिरा इम्तिहान पर

मीर तक़ी मीर

हम कहते थे कि नक़्श उस का नहीं नक़्क़ाश सहल

चाँद सारा लग गया तब नीम-रुख़ सूरत हुई

मीर तक़ी मीर

मसाइब और थे पर दिल का जाना

अजब इक सानेहा सा हो गया है

मीर तक़ी मीर

अब के जुनूँ में फ़ासला शायद कुछ रहे

दामन के चाक और गिरेबाँ के चाक में

मीर तक़ी मीर

हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्या

आन बैठे जो तुम ने प्यार किया

मीर तक़ी मीर

बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ

अब तवक़्क़ो नहीं रिहाई की

मीर तक़ी मीर

आलम आलम इश्क़-ओ-जुनूँ है दुनिया दुनिया तोहमत है

दरिया दरिया रोता हूँ मैं सहरा सहरा वहशत है

मीर तक़ी मीर

आफ़ाक़ की मंज़िल से गया कौन सलामत

अस्बाब लुटा राह में याँ हर सफ़री का

मीर तक़ी मीर

कहना था किसू से कुछ तकता था किसू का मुँह

कल 'मीर' खड़ा था याँ सच है कि दिवाना था

मीर तक़ी मीर

इज्ज़-ओ-नियाज़ अपना अपनी तरफ़ है सारा

इस मुश्त-ए-ख़ाक को हम मसजूद जानते हैं

मीर तक़ी मीर

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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