साहिर की तल्ख़ियाँ : वो क्या चीज़ें हैं जो शायर को तल्ख़ बना देती हैं ?
साहिर का पहला काव्य संग्रह “तल्ख़ियाँ” था। जैसा कि शीर्षक से पता चलता है,उनके अशआर दुनिया के प्रति कड़वाहट और उदासीनता से भरे हुए हैं। एक कवि जिस दुनिया में रहता है, उस पर से विश्वास क्यों खो देता है? साहिर के इन चुनिन्दा अशआर को पढ़िए और ख़ुद जवाब तलाश कीजिए।
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने
इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है