aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
ये उम्र-ए-रफ़्ता की अपनी सदा-ए-पा समझो
इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें
कुछ देर को बजने दो ये शहनाई ज़रा और
क्या तिरे शहर के इंसान हैं पत्थर की तरह
कोई नग़्मा कोई पायल कोई झंकार नहीं
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
सुना है अब भी मिरे हाथ की लकीरों में
नजूमियों को मुक़द्दर दिखाई देता है
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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