यगाना चंगेज़ी के शेर
कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा
फिर वही हम वही अमीनाबाद
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टैग : लखनऊ
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मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता
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उमीद-ओ-बीम ने मारा मुझे दोराहे पर
कहाँ के दैर-ओ-हरम घर का रास्ता न मिला
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ग़ालिब और मीरज़ा 'यगाना' का
आज क्या फ़ैसला करे कोई
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टैग : मिर्ज़ा ग़ालिब
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पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
अब मय-कदा भी सैर के क़ाबिल नहीं रहा
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साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
अर्श-ए-बरीं में और तिरे आस्ताने में
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मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
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ज़माना लाख गुम हो जाए आप अपने अंधेरे में
कोई साहिब-नज़र अपनी तरफ़ से बद-गुमाँ क्यों हो
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गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
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मरते दम तक तिरी तलवार का दम भरते रहे
हक़ अदा हो न सका फिर भी वफ़ादारों से
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हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'
बेड़ियाँ क्यूँकर कटीं ज़िंदाँ का दर क्यूँकर खुला
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शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
ग़म खाते खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया
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टैग : ग़म
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बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
डूब मरने का मज़ा दरिया-ए-बे-साहिल में है
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पर्दा-ए-हिज्र वही हस्ती-ए-मौहूम थी 'यास'
सच है पहले नहीं मालूम था ये राज़ मुझे
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रहेगी चार-दीवार-ए-अनासिर दरमियाँ कब तक
उठेगा ज़लज़ला इक दिन इसी बैठे हुए दिल से
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ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है
यही जानता है तो क्या जानता है
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कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
इक तरफ़ उजड़ती है एक सम्त बसती है
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का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
दिल में सिवाए यार किसी का गुज़र नहीं
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ख़ुदा मालूम इस आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा
छिड़ा है साज़-ए-हस्ती मुब्तदा-ए-बे-ख़बर हो कर
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वही साक़ी वही साग़र वही शीशा वही बादा
मगर लाज़िम नहीं हर एक पर यकसाँ असर होना
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ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
ख़ुद अपनी ज़ात पे शक दिल में आए हैं क्या क्या
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'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार
मेहरबाँ है आज कल ना-मेहरबाँ हो जाएगा
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वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
ये जाम-ए-मय था या कोई दरिया-ए-नूर था
बुतों को देख के सब ने ख़ुदा को पहचाना
ख़ुदा के घर तो कोई बंदा-ए-ख़ुदा न गया
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सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
अपने बस का काम कर लेता हूँ आसाँ देख कर
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जरस ने मुज़्दा-ए-मंज़िल सुना के चौंकाया
निकल चला था दबे पाँव कारवाँ अपना
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मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता
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पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या
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टैग : हार
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झाँकने ताकने का वक़्त गया
अब वो हम हैं न वो ज़माना है
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दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
सब देखते ही देखते वीराना हो गया
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हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
सात पर्दों से अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
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सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या
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रंग बदला फिर हवा का मय-कशों के दिन फिरे
फिर चली बाद-ए-सबा फिर मय-कदे का दर खुला
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किसी के हो रहो अच्छी नहीं ये आज़ादी
किसी की ज़ुल्फ़ से लाज़िम है सिलसिला दिल का
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टैग : ज़ुल्फ़
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इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
आइने को आइना हैराँ को हैराँ देख कर
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मौत माँगी थी ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी
ले दुआ कर चुके अब तर्क-ए-दुआ करते हैं
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दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
वहम की क्या दवा करे कोई
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टैग : वहम
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दूर से देखने का 'यास' गुनहगार हूँ मैं
आश्ना तक न हुए लब कभी पैमाने से
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दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
इंसान आदमी न हुआ जानवर हुआ
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फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
दिल अपना शाम ही से चराग़-ए-सहर हुआ
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यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में
यादश-ब-ख़ैर बैठे थे कल आशियाने में
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फ़रेब-ए-अब्र-ए-करम भी बड़ा सहारा है
बला से नख़्ल-ए-तमन्ना ख़िज़ाँ-रसीदा नहीं
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वतन से क्या कि हवा-ए-वतन से हैं बेज़ार
लिपट रहे जो बगूलों से दश्त-ए-ग़ुर्बत के
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बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
कह दे इतना तो कोई ताज़ा-गिरफ़्तारों से
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क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
दिल न माने तो क्या करे कोई
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पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया
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अजब क्या है हम ऐसे गर्म-रफ़्तारों की ठोकर से
ज़माने के बुलंद-ओ-पस्त का हमवार हो जाना
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'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले
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जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
किस क़दर वाइज़-ए-मक्कार डराता है मुझे
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आ रही है ये सदा कान में वीरानों से
कल की है बात कि आबाद थे दीवानों से
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