जलाल लखनवी के शेर
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही
दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही
शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई
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मैं ने पूछा कि है क्या शग़्ल तो हँस कर बोले
आज कल हम तेरे मरने की दुआ करते हैं
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इक रात दिल-जलों को ये ऐश-विसाल दे
फिर चाहे आसमान जहन्नम में डाल दे
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टैग : विसाल
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जिस ने कुछ एहसाँ किया इक बोझ सर पर रख दिया
सर से तिनका क्या उतारा सर पे छप्पर रख दिया
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टैग : एहसान
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न हो बरहम जो बोसा बे-इजाज़त ले लिया मैं ने
चलो जाने दो बेताबी में ऐसा हो ही जाता है
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'जलाल' अहद-ए-जवानी है दोगे दिल सौ बार
अभी की तौबा नहीं ए'तिबार के क़ाबिल
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गई थी कह के मैं लाती हूँ ज़ुल्फ़-ए-यार की बू
फिरी तो बाद-ए-सबा का दिमाग़ भी न मिला
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टैग : ज़ुल्फ़
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वा'दा क्यूँ बार बार करते हो
ख़ुद को बे-ए'तिबार करते हो
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न ख़ौफ़-ए-आह बुतों को न डर है नालों का
बड़ा कलेजा है इन दिल दुखाने वालों का
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मैं जो आया ग़ैर से हंस कर कहा उस ने 'जलाल'
ख़त्म है जिस पर शराफ़त वो कमीना आ गया
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पहुँचे न वहाँ तक ये दुआ माँग रहा हूँ
क़ासिद को उधर भेज के ध्यान आए है क्या क्या
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टैग : क़ासिद
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