एहसान पर शेर
नेक इरादों के साथ किसी
की ख़ुशी, किसी की भलाई के लिए कुछ करना, वो ख़ूबी है जो कम लोगों में होती है, यूँ तो एहसास जताने वाले हज़ारों होते हैं। किसी के एहसास को याद रखना और उस याद को लफ़्ज़ देना हुस्न और इश्क़ दोनों के लिए आज़माइश की घड़ी होती है। एहसास शायरी के इस गुलदस्ते में आपके लिए बहुत कुछ मौजूद हैः
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
एहसाँ ये कीजिए कि ये एहसाँ न कीजिए
ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन
सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर
सर पे एहसान रहा बे-सर-ओ-सामानी का
ख़ार-ए-सहरा से न उलझा कभी दामन अपना
इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और
जब आग हो नम-ख़ुर्दा तो उठता है धुआँ और
एहसान-ए-रब मोहब्बतें इतनी मिलीं 'अदील'
इस उम्र-ए-मुख़्तसर में न लौटा सकेंगे हम
मिले क़तरा क़तरा ये क्या ज़िंदगी है
ऐ दरिया-ए-रहमत वही तिश्नगी है