कफ़ील आज़र अमरोहवी के शेर
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे
मकाँ शीशे का बनवाते हो 'आज़र'
बहुत आएँगे पत्थर देख लेना
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सुब्ह ले जाते हैं हम अपना जनाज़ा घर से
शाम को फिर उसे काँधों पे उठा लाते हैं
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उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
कमरे में फैलता रहा सिगरेट का धुआँ
मैं बंद खिड़कियों की तरफ़ देखता रहा
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टैग : सिगरेट
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कब आओगे ये घर ने मुझ से चलते वक़्त पूछा था
यही आवाज़ अब तक गूँजती है मेरे कानों में
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टैग : घर
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कोई मंज़िल नहीं मिलती तो ठहर जाते हैं
अश्क आँखों में मुसाफ़िर की तरह आते हैं
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टैग : आँसू
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मैं अपने-आप से हर दम ख़फ़ा रहता हूँ यूँ 'आज़र'
पुरानी दुश्मनी हो जिस तरह दो ख़ानदानों में
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टैग : ख़फ़ा
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जाते जाते ये निशानी दे गया
वो मिरी आँखों में पानी दे गया
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तुम्हारी बज़्म से निकले तो हम ने ये सोचा
ज़मीं से चाँद तलक कितना फ़ासला होगा
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टैग : महफ़िल
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तुम को माहौल से हो जाएगी नफ़रत 'आज़र'
इतने नज़दीक से देखा न करो यारों को
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हल न था मुश्किल का कोई उस के पास
सिर्फ़ वादे आसमानी दे गया
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उदासी का समुंदर देख लेना
मिरी आँखों में आ कर देख लेना
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इक सहमा हुआ सुनसान गली का नुक्कड़
शहर की भीड़ में अक्सर मुझे याद आया है
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बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे
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जब से इक ख़्वाब की ताबीर मिली है मुझ को
मैं हर इक ख़्वाब की ताबीर से घबराता हूँ
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टैग : ख़्वाब
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ये हादसा तो हुआ ही नहीं है तेरे ब'अद
ग़ज़ल किसी को कहा ही नहीं है तेरे ब'अद
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ये हादसा भी तिरे शहर में हुआ होगा
तमाम शहर मुझे ढूँढता फिरा होगा
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मेरे हाथों से खिलौने छीन कर
मुझ को ज़ख़्मों की कहानी दे गया
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हम भी इन बच्चों की मानिंद कोई पल जी लें
एक सिक्का जो हथेली पे सजा लाते हैं
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