राहत इंदौरी के शेर
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
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दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
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न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
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शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
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हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
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आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
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नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
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टैग : सियासत
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बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
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टैग : दुनिया
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ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
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बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
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वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
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मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
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हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं
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टैग : एकता
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तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा
मुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा
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टैग : श्रद्धांजलि
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सूरज सितारे चाँद मिरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे
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टैग : मोहब्बत
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एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
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अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
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टैग : रुस्वाई
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मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
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ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
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मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
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टैग : पानी
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मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
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रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
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मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
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टैग : दुश्मन
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इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं
तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है
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शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
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टैग : गर्मी
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मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना
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टैग : प्रेरणादायक
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ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
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कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
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टैग : बेरोज़गारी
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रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है
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हमारे मीर-तक़ी-'मीर' ने कहा था कभी
मियाँ ये आशिक़ी इज़्ज़त बिगाड़ देती है
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टैग : मीर तक़ी मीर
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सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को
अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की
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सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं
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चराग़ों का घराना चल रहा है
हवा से दोस्ताना चल रहा है
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अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे
बड़े सवाब कमाए गए जवानी में
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आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
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तुझ से मिलने की तमन्ना भी बहुत है लेकिन
आने जाने में किराया भी बहुत लगता है
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चाँद सूरज मिरी चौखट पे कई सदियों से
रोज़ लिक्खे हुए चेहरे पे सवाल आते हैं
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जा-नमाज़ों की तरह नूर में उज्लाई सहर
रात भर जैसे फ़रिश्तों ने इबादत की है
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मैं करवटों के नए ज़ाइक़े लिखूँ शब-भर
ये इश्क़ है तो कहाँ ज़िंदगी अज़ाब करूँ
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शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया
कुछ यादों ने चुटकी में लोबान लिया
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दिन ढल गया तो रात गुज़रने की आस में
सूरज नदी में डूब गया हम गिलास में
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