अतहर नफ़ीस के शेर
जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर
अक्सर याद न आया वो
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हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं
इक शक्ल हमें फिर भाई है इक सूरत दिल में समाई है
हम आज बहुत सरशार सही पर अगला मोड़ जुदाई है
मैं तेरे क़रीब आते आते
कुछ और भी दूर हो गया हूँ
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ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले
मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
और उस के लिए जो कभी आया न गया हो
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कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
होता रहता है यूँ ही क़र्ज़ बराबर मेरा
लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ
मैं अपने वजूद की सज़ा हूँ
इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई
जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या
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टैग : तन्हाई
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न मंज़िल हूँ न मंज़िल-आश्ना हूँ
मिसाल-ए-बर्ग उड़ता फिर रहा हूँ
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ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी
क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया
इतने दिन के बाद तू आया है आज
सोचता हूँ किस तरह तुझ से मिलूँ
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टैग : स्वागत
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वो दौर क़रीब आ रहा है
जब दाद-ए-हुनर न मिल सकेगी
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किसी ना-ख़्वांदा बूढ़े की तरह ख़त उस का पढ़ता हूँ
कि सौ सौ बार इक इक लफ़्ज़ से उँगली गुज़रती है
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टैग : ख़त
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बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन
जो मेरा दोस्त है मुझ से बड़ा है
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टैग : दोस्त
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उस ने मिरी निगाह के सारे सुख़न समझ लिए
फिर भी मिरी निगाह में एक सवाल है नया
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टैग : निगाह
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ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
और मैं उसी चेहरे से नए ख़्वाब सजाऊँ
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सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं
अपने गुम-गश्ता किनारों के लिए बहता हूँ मैं
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बा-वफ़ा था तो मुझे पूछने वाले भी न थे
बे-वफ़ा हूँ तो हुआ नाम भी घर घर मेरा
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वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या
कोई मेहर नहीं कोई क़हर नहीं फिर सच्चा शेर सुनाएँ क्या
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'अतहर' तुम ने इश्क़ किया कुछ तुम भी कहो क्या हाल हुआ
कोई नया एहसास मिला या सब जैसा अहवाल हुआ