रक्षाबंधन पर शेर
राखी की डोर से बंधी खूबसूरत शायरी
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए
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या रब मिरी दुआओं में इतना असर रहे
फूलों भरा सदा मिरी बहना का घर रहे
बहनों की मोहब्बत की है अज़्मत की अलामत
राखी का है त्यौहार मोहब्बत की अलामत
राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल
बहन का प्यार जुदाई से कम नहीं होता
अगर वो दूर भी जाए तो ग़म नहीं होता
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
एक राखी ज़िंदगी का रुख़ बदल सकती है आज
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
ज़िंदगी भर की हिफ़ाज़त की क़सम खाते हुए
भाई के हाथ पे इक बहन ने राखी बाँधी
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
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