आदिल असीर देहलवी के दोहे
ख़िदमत से उस्ताद की रहता है जो दूर
चेहरे पर उस के नहीं अच्छाई का नूर
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क्या नादाँ से दोस्ती क्या दाना से बैर
दोनों ऐसे काम हैं जिन में नहीं है ख़ैर
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अम्मी होंगी मुंतज़िर और कहीं मत जाओ
छूटो जब इस्कूल से सीधे घर को आओ
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दुश्मन भी हैरान है कर के लाख बिगाड़
तेरी मर्ज़ी के बिना हिलता नहीं पहाड़
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गाली देना पाप है ठीक नहीं तौहीन
औरों को कर के दुखी ख़ुद होगे ग़मगीन
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जो राह की अच्छी है उधर जाता है
बच कर वो बुराई से गुज़र जाता है
पढ़ कर ही तो आता है सलीक़ा बच्चो
ता'लीम से इंसान सुधर जाता है
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ज़ात पात और धर्म की ठीक नहीं तकरार
भूल गए क्यों आज हम सदियों का वो प्यार
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बन कर आए आख़िरी जग में आप रसूल
पेश किए हैं आप ने अच्छे नेक उसूल
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मंजन या मिसवाक से रक्खोगे गर साफ़
दाँत चमकते पाओगे मोती से शफ़्फ़ाफ़
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साइल को धुतकारना बात नहीं है ठीक
दर पर आए जब गदा दे देना कुछ भीक
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