आरसी के दोहे
आँखें चौंधियाई नहीं और न झुलसे पाँव
बाँट गई दीवार जो वही दे गई छाँव
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नन्हे बालक जैसा मन में रहता है संताप
जागे तो शैतान बहुत है सोए तो निष्पाप
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नदिया सूखी द्वेष की प्रीत करे बदलाओ
आर मिल गया पार से ख़त्म हुआ अलगाव
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जैसा उस का क्रोध है वैसा उस का प्यार
अलग अलग होती नहीं दो-धारी तलवार
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ध्यान रखे चिंता करे ये है उस की रीत
नारी के संवाद को समझ न लेना प्रीत
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कान अगर है तेरी मेरी समाअतों का साज़
वीराने में पेड़ गिरे तो होगी क्या आवाज़
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सूरज जब सर पर चढ़े धूप पसारे पाँव
लौट आती है जिस्म में सहम के मेरी छाँव
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यादें तिरी न कट सकीं काट दिए नाख़ून
भींच भींच कर मुट्ठियाँ आने लगा था ख़ून
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