अब्बास दाना के शेर
किसे दोस्त अपना बनाएँ हम किसे दिल का हाल सुनाएँ हम
सभी ग़ैर हैं सभी अजनबी तिरे गाँव में मिरे शहर में
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उस से पूछो अज़ाब रस्तों का
जिस का साथी सफ़र में बिछड़ा है
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टैग : जुदाई
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तुम्हारा नाम लिया था कभी मोहब्बत से
मिठास उस की अभी तक मिरी ज़बान में है
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तअ'ज्जुब कुछ नहीं 'दाना' जो बाज़ार-ए-सियासत में
क़लम बिक जाएँ तो सच बात लिखना छोड़ देते हैं
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अपने ही ख़ून से इस तरह अदावत मत कर
ज़िंदा रहना है तो साँसों से बग़ावत मत कर
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जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं
ये कैसा शहर है ज़ालिम को ज़िंदा छोड़ देते हैं
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घर की वीरानियाँ ले जाए चुरा कर कोई
इसी उम्मीद पे दरवाज़ा खुला रक्खा है
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तुम आके लौट गए फिर भी हो यहीं मौजूद
तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू मिरे मकान में है
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है जिस्म सख़्त मगर दिल बहुत ही नाज़ुक है
कि जैसे आईना महफ़ूज़ इक चट्टान में है
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इस से बढ़ कर तिरी यादों की करूँ क्या ताज़ीम
तेरी यादों में ज़माने को भुला रक्खा है
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