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अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

1911 | पीलीभीत, भारत

जिगर मुरादाबदी के शागिर्द, क्लासिकी रंग की शायरी के लिए जाने जाते हैं

जिगर मुरादाबदी के शागिर्द, क्लासिकी रंग की शायरी के लिए जाने जाते हैं

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी के शेर

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तुम्हारे संग-ए-तग़ाफ़ुल का क्यूँ करें शिकवा

इस आइने का मुक़द्दर ही टूटना होगा

खड़ा हुआ हूँ सर-ए-राह मुंतज़िर कब से

कि कोई गुज़रे तो ग़म का ये बोझ उठवा दे

सदा किसे दें 'नईमी' किसे दिखाएँ ज़ख़्म

अब इतनी रात गए कौन जागता होगा

माज़ी के रेग-ज़ार पे रखना सँभल के पाँव

बच्चों का इस में कोई घरौंदा बना हो

मिरे ख़ुलूस पे शक की तो कोई वज्ह नहीं

मिरे लिबास में ख़ंजर अगर छुपा निकला

सज्दे के हर निशाँ पे है ख़ूँ सा जमा हुआ

यारो ये उस के घर का कहीं रास्ता हो

ये हाथ राख में ख़्वाबों की डालते तो हो

मगर जो राख में शोला कोई दबा निकला

मैं भी इस सफ़्हा-ए-हस्ती पे उभर सकता हूँ

रंग तो तुम मिरी तस्वीर में भर कर देखो

हुस्न इक दरिया है सहरा भी हैं उस की राह में

कल कहाँ होगा ये दरिया ये भी तो सोचो ज़रा

मिरे ख़्वाबों की चिकनी सीढ़ियों पर

जाने किस का बुत टूटा पड़ा है

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