अब्दुल मजीद हैरत के शेर
ये शबाब-ए-हुस्न ये हुस्न-ए-शबाब
हश्र तक उन पर यही आलम रहे
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सुब्ह ये फ़िक्र कि हो जाए शाम
शाम को ये कि सहर हो जाए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कोई ख़ुश हो कि ख़फ़ा हो 'हैरत'
हम तो हर बात खरी कहते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सच तो ये है कि नदामत ही हुई
राज़ की बात किसी से कह के
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बहर-ए-बीमार दवा है न दुआ
क्या इसे चारागरी कहते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इश्क़ में ऐन हुनर-मंदी है
सब जिसे बे-हुनरी कहते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
'हैरत' के ग़म-कदे में ख़ुशी का गुज़र कहाँ
आप आ गए तो रौनक़-ए-काशाना हो गई
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड