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अब्दुल्लतीफ़ शौक़

1938 | नेपालगंज, नेपाल

अब्दुल्लतीफ़ शौक़ के शेर

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दर्द बख़्शा चैन छीना दिल के टुकड़े कर दिए

हाए किस ज़ालिम पे मैं ने भी भरोसा कर लिया

मुझ को किसी यज़ीद की बैअत नहीं क़ुबूल

नेज़े ये रक्खो आओ मिरा सर भी ले चलो

तख़रीब के पर्दे में ही ता'मीर है साक़ी

शीशा कोई पिघला है तो पैमाना बना है

अपनी सूरत देखना हो अपने दिल में देखिए

दिल सा दुनिया में कोई भी आइना मिलता नहीं

बुत यहाँ मिलते नहीं हैं या ख़ुदा मिलता नहीं

अज़्म मुस्तहकम तो हो दुनिया में क्या मिलता नहीं

तकमील-ए-वफ़ा होश में मुमकिन ही नहीं था

दीवाना समझ बूझ के दीवाना बना है

दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया

मुख़्तसर सी ज़िंदगी में मैं ने क्या क्या कर लिया

काबे में था सकूँ कलीसा में चैन था

तुझ से बिछड़ के दिन ये गुज़ारे कहाँ कहाँ

ढूँढता फिरता है मुझ को क्यूँ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू

मैं वहाँ हूँ ख़ुद जहाँ अपना पता मिलता नहीं

लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे

फिर टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे

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