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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आबिद मलिक के शेर

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बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ

मैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ

हज़ार ताने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा

ये वो हुजूम है जो मुश्तइल नहीं होगा

ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है

देखिए पहले यहाँ कौन हरा होता है

फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझे

कभी ज़मीन पे और ज़मीं से देख मुझे

पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से

आख़िरी बार दरख़्तों ने मुझे देखा था

मियाँ ये इश्क़ तो सब टूट कर ही करते हैं

किसी से हिज्र अगर वालिहाना हो जाए

सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें

बात निकली है कि मैं ख़्वाब में पाया गया हूँ

ये मोहब्बत कोई अंजान सी शय होती थी

क्या ये कम है कि इसे तेरी बदौलत समझे

निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स

ये आईना अभी तय्यार होने वाला है

अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी

अभी तो दश्त में दो चार दिन गुज़ारे हैं

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