अब्र अहसनी गनौरी के शेर
वहशियों को ये सबक़ देती हुई आई बहार
तार बाक़ी न रहे कोई गरेबानों में
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इश्क़ में और भी दीवाना बना देती है
मेरी आवाज़ में मिल कर तिरी आवाज़ मुझे
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टैग : ध्वनि
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तुम क्यों उदास हो गए मैदान-ए-हश्र में
कह दो तो दिल की दिल में मिरी दास्ताँ रहे
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शायद इस बात पे लब मेरे सिए जाते हैं
आह के साथ निकल जाए न अरमाँ कोई
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पलट आता हूँ मैं मायूस हो कर उन मक़ामों से
जहाँ से सिलसिला नज़दीक-तर होता है मंज़िल का
आँखों में अश्क दाग़ जिगर में लबों पे आह
सब कुछ है पास बे-सर-ओ-सामाँ नहीं हैं हम
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कौन अब कश्मकश-ए-ज़ीस्त से दे मुझ को नजात
कर चुका है मिरा क़ातिल नज़र-अंदाज़ मुझे
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