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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आग़ाज़ बरनी

आग़ाज़ बरनी के शेर

मिरे एहसास के आतिश-फ़िशाँ का

अगर हो तो मिरे दिल तक धुआँ हो

उसे सुलझाऊँ कैसे

मैं ख़ुद उलझा हुआ हूँ

मैं तो बस ये चाहता हूँ वस्ल भी

दो दिलों के दरमियाँ हाएल हो

वो ख़्वाब जिस पे तीरा-शबी का गुमान था

वो ख़्वाब आफ़्ताब की ताबीर हो गया

क़द का अंदाज़ा तुम्हें हो जाएगा

अपने साए को घटा कर देखना

मैं ख़ुद से छुपा लेकिन

उस शख़्स पे उर्यां था

अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे

हम भी पैराया-ए-इज़हार नहीं बदलेंगे

शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की

तेरे दामन में इक सहर होती

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