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अहमद शहरयार

1983 | ईरान

ईरान स्थित प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर

ईरान स्थित प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर

अहमद शहरयार के शेर

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सालगिरह पर कितनी नेक तमन्नाएँ मौसूल हुईं

लेकिन इन में एक मुबारकबाद अभी तक बाक़ी है

फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर

जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं

रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब

देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा

दस्तकें सदा कौन दर पे आया है

फ़क़ीर-ए-शहर है या शहरयार देखिएगा

ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात

इस का भी था यक़ीं मुझे वो भी मिरे गुमाँ में था

हमारे शहर की रिवायतों में एक ये भी था

दुआ से क़ब्ल पूछना असर में कितनी देर है

क़तरा ठीक है दरिया होने में नुक़सान बहुत है

देख तो कैसे डूब रहा है मेरा लश्कर मुझ में

अभी हमें गुज़ारनी है एक उम्र-ए-मुख़्तसर

मगर हमारी उम्र-ए-मुख़्तसर में कितनी देर है

समाई किस तरह मेरी आँखों की पुतलियों में

वो एक हैरत जो आईने से बहुत बड़ी थी

तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की

तू भी मुट्ठी में कहाँ भेंच सका पानी को

इल्म का दम भरना छोड़ो भी और अमल को भूल भी जाओ

आईना-ख़ाने में हो साहिब फ़िक्र करो हैरानी की

तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है

तुझ में जो नापैद है प्यारे वो है मयस्सर मुझ में

जल उठें यादों की क़ंदीलें, सदाएँ डूब जाएँ

दर-हक़ीक़त ख़ामुशी सहरा भी है दरिया भी है

लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए

ये तो वही हुनर है जो दस्त-ए-तबीब-ए-जाँ में था

हद्द-ए-गुमाँ से एक शख़्स दूर कहीं चला गया

मैं भी वहीं चला गया मैं भी गुज़िश्तगाँ में था

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