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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहसन गुलफ़ाम

1998 | आज़मगढ़, भारत

अहसन गुलफ़ाम के शेर

शहर का शहर ये पीछे जो पड़ा है मेरे

तेरे दीवाने में कुछ बात तो होती होगी

ये शाइ'री का तकल्लुफ़ बदन पे अच्छा लिबास

सब इल्तिज़ाम उसी एक बे-वफ़ा के लिए

मुझ को दावा नहीं यूसुफ़ सा हसीं होने का

फिर भी है मेरा ज़ुलेख़ाओं में चर्चा साहब

अब कहाँ मिलता है आशिक़ कोई सच्चा साहब

ज़ख़्म ही कोई लगा दें मुझे अच्छा साहब

इतनी महँगाई है मरना भी अगर चाहूँ तो

ज़हर मिलता नहीं बाज़ार में सस्ता साहब

रहने को अपने पास कोई छत नहीं मगर

चिड़ियों के चहचहाने को आँगन बना दिया

उस ने भूले से कभी देखा था मेरी जानिब

उम्र भर फिर रहा होश से रिश्ता साहब

कहने को फ़क़त इब्न-ए-अली इब्न-ए-अली हैं

देखो तो कहीं जज़्बा-ए-हैदर नहीं मिलता

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